Kendra’s 6th  Webaithak  Marked  By Melodious  Vocal Recital

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प्राचीन कला केन्द्र की छठीं वैबबैठक में शुभ्रा तलेगांवकर का मुग्धमयी गायन

कोविड के चलते केन्द्र आजकल संगीत को आॅनलाइन एवं सोशल मीडिया पर प्रचारित कर रहा है । इसी श्रृंखला में आज केन्द्र की छठीं वैबबैठक का आयोजन किया गया जिसे आगरा की युवा एवं प्रतिभाशाली शास्त्रीय गायिका शुभ्रा तलेगांवकर के गायन द्वारा सजाया गया ।जिसमें इनके साथ तबले पर श्री केशव तलेगांवकर एवं हारमोनियम पर श्रीमती प्रतिभा तलेगांवकर जी ने संगत की ।

शुभ्रा ग्वालियर घराने की युवा गायिका होने के साथ-साथ केन्द्र की प्रतिभाशाली छात्रा भी रही है। अल्पायु से ही संगीत के क्षेत्र में अपनी प्रस्तुतियां दी हैं । शुभ्रा की संगीत में ख्याल,ठुमरी और तराना पर खास पकड़ है । शुभ्रा ने राग बागेश्री से कार्यक्रम की शुरूआत की जिसमें उन्होंने मध्य लय विलम्बित रूपक ताल में निबद्ध रचना ‘‘काहे से कहूं मन की बतीयां’’ पेश की । उपरांत मध्य लय तीन ताल में सजी बंदिश ‘‘जावो जावो रे मुरारी’’ प्रस्तुत की ।

 कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए शुभ्रा ने द्रुत तीन ताल में निबद्ध तराना पेश किया जिसके रचयिता उनके पिता एवं गुरू केशव तलेगांवकर है । उपरांत शुभ्रा ने देस राग में निबद्ध खूबसूरत बंदिश ‘‘सावन की ऋतु आई’’ पेश करके समां बांधा । कार्यक्रम का समापन शुभ्रा ने मौसम के अनुरूप कजरी से किया । इस कजरी के बोल ‘‘ बूंदीयन बरसन लागी ओ रामा मोरे अंगने में’’। ये कजरी शुभ्रा के दादा पंडित रघुनाथ तलेगांवकर द्वारा रचित है ।

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